देश भक्ति कविताएँ Desh Bhakti Poem In Hindi

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Desh Bhakti Poem In Hindi / Desh Bhakti Kavita In Hindi

मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

चिश्ती ने जिस ज़मीं पे पैग़ामे हक़ सुनाया
नानक ने जिस चमन में बदहत का गीत गाया
तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया
जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुड़ाया
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

सारे जहाँ को जिसने इल्मो-हुनर दिया था
यूनानियों को जिसने हैरान कर दिया था
मिट्टी को जिसकी हक़ ने ज़र का असर दिया था
तुर्कों का जिसने दामन हीरों से भर दिया था
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

टूटे थे जो सितारे फ़ारस के आसमां से
फिर ताब दे के जिसने चमकाए कहकशां से
बदहत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकां से
मीरे-अरब को आई ठण्डी हवा जहाँ से
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

बंदे किलीम जिसके, परबत जहाँ के सीना
नूहे-नबी का ठहरा, आकर जहाँ सफ़ीना
रफ़अत है जिस ज़मीं को, बामे-फलक़ का ज़ीना
जन्नत की ज़िन्दगी है, जिसकी फ़िज़ा में जीना
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

गौतम का जो वतन है, जापान का हरम है
ईसा के आशिक़ों को मिस्ले-यरूशलम है
मदफ़ून जिस ज़मीं में इस्लाम का हरम है
हर फूल जिस चमन का, फिरदौस है, इरम है
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

Sarfaroshi Ki Tamanna – Desh Bhakti Poem

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,

अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद

आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार

क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,

हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,

है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है

हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है

दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है

प्यारा हिंदुस्तान है – Desh Bhakti Poem

अमरपुरी से भी बढ़कर के जिसका गौरव-गान है
तीन लोक से न्यारा अपना प्यारा हिंदुस्तान है।
गंगा, यमुना सरस्वती से सिंचित जो गत-क्लेश है।
सजला, सफला, शस्य-श्यामला जिसकी धरा विशेष है।

ज्ञान-रश्मि जिसने बिखेर कर किया विश्व-कल्याण है
सतत-सत्य-रत, धर्म-प्राण वह अपना भारत देश है।

यहीं मिला आकार ‘ज्ञेय’ को मिली नई सौग़ात है-
इसके ‘दर्शन’ का प्रकाश ही युग के लिए विहान है।

वेदों के मंत्रों से गुंजित स्वर जिसका निर्भ्रांत है।
प्रज्ञा की गरिमा से दीपित जग-जीवन अक्लांत है।

अंधकार में डूबी संसृति को दी जिसने दृष्टि है
तपोभूमि वह जहाँ कर्म की सरिता बहती शांत है।

इसकी संस्कृति शुभ्र, न आक्षेपों से धूमिल कभी हुई
अति उदात्त आदर्शों की निधियों से यह धनवान है।।

योग-भोग के बीच बना संतुलन जहाँ निष्काम है।
जिस धरती की आध्यात्मिकता, का शुचि रूप ललाम है।

निस्पृह स्वर गीता-गायक के गूँज रहें अब भी जहाँ
कोटि-कोटि उस जन्मभूमि को श्रद्धावनत प्रणाम है।

यहाँ नीति-निर्देशक तत्वों की सत्ता महनीय है
ऋषि-मुनियों का देश अमर यह भारतवर्ष महान है।

क्षमा, दया, धृति के पोषण का इसी भूमि को श्रेय है।
सात्विकता की मूर्ति मनोरम इसकी गाथा गेय है।

बल-विक्रम का सिंधु कि जिसके चरणों पर है लोटता-
स्वर्गादपि गरीयसी जननी अपराजिता अजेय है।
समता, ममता और एकता का पावन उद्गम यह है
देवोपम जन-जन है इसका हर पत्थर भगवान है।

Desh Bhakti Kavita 2023

क्या हुआ गर मर गए अपने वतन के वास्ते
बुलबुलें कुर्बान होती हैं चमन के वास्ते

तरस आता है तुम्हारे हाल पे, ऐ हिंदियो
ग़ैर के मोहताज हो अपने कफ़न के वास्ते

देखते हैं आज जिसको शाद है, आज़ाद है
क्या तुम्हीं पैदा हुए रंजो-मिहन के वास्ते…?

दर्द से अब बिलबिलाने का ज़माना हो चुका
फ़िक्र करनी चाहिए मर्जे़ कुहन के वास्ते

हिंदुओं को चाहिए अब क़स्द काबे का करें
और फिर मुस्लिम बढ़ें गंगो-जमन के वास्ते

Desh Bhakti Kavita / Desh Bhakti Poem

ये देश है वीर जवानों का
अलबेलों का मस्तानों का
इस देश का यारों क्या कहना
ये देश है दुनिया का गहना

यहाँ चौड़ी छाती वीरों की
यहाँ भोली शक्लें हीरों की
यहाँ गाते हैं राँझे मस्ती में
मचती में धूमें बस्ती में

पेड़ों में बहारें झूलों की
राहों में कतारें फूलों की
यहाँ हँसता है सावन बालों में
खिलती हैं कलियाँ गालों में

कहीं दंगल शोख जवानों के
कहीं करतब तीर कमानों के
यहाँ नित नित मेले सजते हैं
नित ढोल और ताशे बजते हैं

दिलबर के लिये दिलदार हैं हम
दुश्मन के लिये तलवार हैं हम
मैदां में अगर हम डट जाएं
मुश्किल है कि पीछे हट जाएं

Desh Bhakti Kavitayen / Desh Bhakti Poem

अलग अलग गलियों कुचों में लोग कोन गिनता है
साथ खड़े हों रहने वाले, देश तभी बनता है
बड़ी बड़ी हम देश प्रेम की बात किये जाते हैं
वक्त पड़े तो अपनों के भी काम नही आते हैं

सरहद की रखवाली को सेना अपनी करती है
पर अंदर सडकों पर लड़की चलने में डरती है
युवा शक्ति का नारा सुनने में अक्सर आता है
सही दिशा भी किसी युवा को नहीं दिखा पाता है

खेत हमारी पूँजी है, और फसल हमारे गहने
क्यों किसान फिर कहीं लगे हैं जान स्वयं की लेने
थल सजा है कहीं परन्तु भूख नहीं लगती है
किसी की बेटी भूख के मारे रात रात जगती है

क्या सडसठ सालों में ये आजाद वतन अपना है
क्यायही भगत सिंह और महात्मा गाँधी का सपना है
क्या इसीलिए आज़ाद गोली खुद को मारी
क्या इसीलिए रण में कूदी वह नन्ही सी झलकारी

क्याइसीलिए बिस्मिल ने ‘फिर आऊंगा’ कह डाला था
क्या ऊधम सिंह ने क्रोध को अपने इसलिए पाला था
गर नहीं तो फिर कैसे चूके हम राष्ट्र नया गढ़ने में
जिस आज़ादी के लिए लड़े उसकी इज्जत करने में

जो फूल सूख कर बिखर गया वह फिर से नही खिलेगा
जो समय हाथ से निकल गया वह वापस नहीं मिलेगा
पर अक्लमंद को एक इशारा ही काफ़ी होता है
सुधार ही हर गलती के लिए असली माफ़ी होता है

देश प्रेम और राष्ट्रवाद के गान नहीं गाओ तुम
अपने अंदर बसे भगत सिंह को जरा जगाओं तुम
मंजिल दूर नहीं राही जब करले अटल इरादा
अपना हाथ उठा कर ख़ुद से आज करो ये वादा

मेरे सामने कोई कभी भी भूख से नही मरेगा
मेरे रहते अन्याय से कोई नहीं डरेगा
मैं पहले उसका जिसकी तत्काल मदद करनी है
अपने आगे हर पीड़ित की हर पीड़ा हरनी है

शपथ गृहण कर आज़ादी का उत्सव आज मनाते हैं
देश बुलाता है आओ कुछ काम तो इसके आते हैं

वन्दे मातरम् – भारत माता की जय

DeshBhakti Poem Hindi / Desh Bhakti Poem

आज से आजाद अपना देश फिर से !

ध्यान बापू का प्रथम मैंने किया है,
क्योंकि मुर्दों में उन्होंने भर दिया है
नव्य जीवन का नया उन्मेष फिर से
आज से आजाद अपना देश फिर से

दासता की रात में जो खो गये थे,
भूल अपना पंथ, अपने को गये थे

वे लगे पहचानने निज वेश फिर से !
आज से आजाद अपना देश फिर से!

स्वप्न जो लेकर चले उतरा अधूरा,
एक दिन होगा, मुझे विश्वास, पूरा,

शेष से मिल जाएगा अवशेष फिर से !
आज से आजाद अपना देश फिर से!

देश तो क्या, एक दुनिया चाहते हम,
आज बँट-बँट कर मनुज की जाति निर्मम,
विश्व हमसे ले नया संदेश फिर से !
आज से आजाद अपना देश फिर से!

Independence Day Poem Video

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