भज गोविन्दम् लिरिक्स Bhaj Govindam Lyrics

Bhaj Govindam Lyrics In Hindi, Bhaj Govindam Is A Latest Krishna Devotional Song. And Shri Krishna Always Keeps His Blessings On His Devotees.

Bhaj Govindam Lyrics

भज गोविन्दम्

‘आदि शंकराचार्य ‘

भज गोविन्दं भज गोविन्दं,
गोविन्दं भज मूढ़मते।
संप्राप्ते सन्निहिते काले,
न हि न हि रक्षति डुकृञ् करणे॥१॥

हे मोह से ग्रसित बुद्धि वाले मित्र, गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि मृत्यु के समय व्याकरण के नियम याद रखने से आपकी रक्षा नहीं हो सकती है॥१॥

मूढ़ जहीहि धनागमतृष्णाम्,
कुरु सद्बुद्धिमं मनसि वितृष्णाम्।
यल्लभसे निजकर्मोपात्तम्,
वित्तं तेन विनोदय चित्तं॥२॥

हे मोहित बुद्धि! धन एकत्र करने के लोभ को त्यागो। अपने मन से इन समस्त कामनाओं का त्याग करो। सत्यता के पथ का अनुसरण करो, अपने परिश्रम से जो धन प्राप्त हो उससे ही अपने मन को प्रसन्न रखो॥२॥

नारीस्तनभरनाभीदेशम्,
दृष्ट्वा मागा मोहावेशम्।
एतन्मान्सवसादिविकारम्,
मनसि विचिन्तय वारं वारम्॥३॥

स्त्री शरीर पर मोहित होकर आसक्त मत हो। अपने मन में निरंतर स्मरण करो कि ये मांस-वसा आदि के विकार के अतिरिक्त कुछ और नहीं हैं॥३॥

नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्।
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं,
लोक शोकहतं च समस्तम्॥४॥

जीवन कमल-पत्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प (क्षणभंगुर) है। यह समझ लो कि समस्त विश्व रोग, अहंकार और दु:ख में डूबा हुआ है॥४॥

यावद्वित्तोपार्जनसक्त:,
तावन्निजपरिवारो रक्तः।
पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे,
वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे॥५॥

जब तक व्यक्ति धनोपार्जन में समर्थ है, तब तक परिवार में सभी उसके प्रति स्नेह प्रदर्शित करते हैं परन्तु अशक्त हो जाने पर उसे सामान्य बातचीत में भी नहीं पूछा जाता है॥५॥

यावत्पवनो निवसति देहे,
तावत् पृच्छति कुशलं गेहे।
गतवति वायौ देहापाये,
भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये॥६॥

जब तक शरीर में प्राण रहते हैं तब तक ही लोग कुशल पूछते हैं। शरीर से प्राण वायु के निकलते ही पत्नी भी उस शरीर से डरती है॥६॥

बालस्तावत् क्रीडासक्तः,
तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः।
वृद्धस्तावच्चिन्तासक्तः,
परे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः॥७॥

बचपन में खेल में रूचि होती है , युवावस्था में युवा स्त्री के प्रति आकर्षण होता है, वृद्धावस्था में चिंताओं से घिरे रहते हैं पर प्रभु से कोई प्रेम नहीं करता है॥७॥

का ते कांता कस्ते पुत्रः,
संसारोऽयमतीव विचित्रः।
कस्य त्वं वा कुत अयातः,
तत्त्वं चिन्तय तदिह भ्रातः॥८॥

कौन तुम्हारी पत्नी है, कौन तुम्हारा पुत्र है, ये संसार अत्यंत विचित्र है, तुम कौन हो, कहाँ से आये हो, बन्धु ! इस बात पर तो पहले विचार कर लो॥८॥

सत्संगत्वे निस्संगत्वं,
निस्संगत्वे निर्मोहत्वं।
निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं
निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः॥९॥

सत्संग से वैराग्य, वैराग्य से विवेक, विवेक से स्थिर तत्त्वज्ञान और तत्त्वज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है॥९॥

वयसि गते कः कामविकारः,
शुष्के नीरे कः कासारः।
क्षीणे वित्ते कः परिवारः,
ज्ञाते तत्त्वे कः संसारः॥१०॥

आयु बीत जाने के बाद काम भाव नहीं रहता, पानी सूख जाने पर तालाब नहीं रहता, धन चले जाने पर परिवार नहीं रहता और तत्त्व ज्ञान होने के बाद संसार नहीं रहता॥१०॥

मा कुरु धनजनयौवनगर्वं,
हरति निमेषात्कालः सर्वं।
मायामयमिदमखिलम् हित्वा,
ब्रह्मपदम् त्वं प्रविश विदित्वा॥११॥

धन, शक्ति और यौवन पर गर्व मत करो, समय क्षण भर में इनको नष्ट कर देता है| इस विश्व को माया से घिरा हुआ जान कर तुम ब्रह्म पद में प्रवेश करो॥११॥

दिनयामिन्यौ सायं प्रातः,
शिशिरवसन्तौ पुनरायातः।
कालः क्रीडति गच्छत्यायुस्तदपि
न मुन्च्त्याशावायुः॥१२॥

दिन और रात, शाम और सुबह, सर्दी और बसंत बार-बार आते-जाते रहते है काल की इस क्रीडा के साथ जीवन नष्ट होता रहता है पर इच्छाओ का अंत कभी नहींहोता है॥१२॥

द्वादशमंजरिकाभिरशेषः
कथितो वैयाकरणस्यैषः।
उपदेशोऽभूद्विद्यानिपुणैः, श्रीमच्छंकरभगवच्चरणैः॥१२अ॥

बारह गीतों का ये पुष्पहार, सर्वज्ञ प्रभुपाद श्री शंकराचार्य द्वारा एक वैयाकरण को प्रदान किया गया॥१२अ॥

काते कान्ता धन गतचिन्ता,
वातुल किं तव नास्ति नियन्ता।
त्रिजगति सज्जनसं गतिरैका,
भवति भवार्णवतरणे नौका॥१३॥

तुम्हें पत्नी और धन की इतनी चिंता क्यों है, क्या उनका कोई नियंत्रक नहीं है| तीनों लोकों में केवल सज्जनों का साथ ही इस भवसागर से पार जाने की नौका है॥१३॥

जटिलो मुण्डी लुञ्छितकेशः, काषायाम्बरबहुकृतवेषः।
पश्यन्नपि च न पश्यति मूढः,
उदरनिमित्तं बहुकृतवेषः॥१४॥

बड़ी जटाएं, केश रहित सिर, बिखरे बाल , काषाय (भगवा) वस्त्र और भांति भांति के वेश ये सब अपना पेट भरने के लिए ही धारण किये जाते हैं, अरे मोहित मनुष्य तुम इसको देख कर भी क्यों नहीं देख पाते हो॥१४॥

अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं,
दशनविहीनं जतं तुण्डम्।
वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं,
तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम्॥१५॥

क्षीण अंगों, पके हुए बालों, दांतों से रहित मुख और हाथ में दंड लेकर चलने वाला वृद्ध भी आशा-पाश से बंधा रहता है॥१५॥

अग्रे वह्निः पृष्ठेभानुः,
रात्रौ चुबुकसमर्पितजानुः।
करतलभिक्षस्तरुतलवासः,
तदपि न मुञ्चत्याशापाशः॥१६॥

सूर्यास्त के बाद, रात्रि में आग जला कर और घुटनों में सर छिपाकर सर्दी बचाने वाला, हाथ में भिक्षा का अन्न खाने वाला, पेड़ के नीचे रहने वाला भी अपनी इच्छाओं के बंधन को छोड़ नहीं पाता है॥१६॥

कुरुते गङ्गासागरगमनं,
व्रतपरिपालनमथवा दानम्।
ज्ञानविहिनः सर्वमतेन,
मुक्तिं न भजति जन्मशतेन॥१७॥

किसी भी धर्म के अनुसार ज्ञान रहित रह कर गंगासागर जाने से, व्रत रखने से और दान देने से सौ जन्मों में भी मुक्ति नहीं प्राप्त हो सकती है॥१७॥

सुर मंदिर तरु मूल निवासः,
शय्या भूतल मजिनं वासः।
सर्व परिग्रह भोग त्यागः,
कस्य सुखं न करोति विरागः॥१८॥

देव मंदिर या पेड़ के नीचे निवास, पृथ्वी जैसी शय्या, अकेले ही रहने वाले, सभी संग्रहों और सुखों का त्याग करने वाले वैराग्य से किसको आनंद की प्राप्ति नहीं होगी॥१८॥

योगरतो वाभोगरतोवा,
सङ्गरतो वा सङ्गवीहिनः।
यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं,
नन्दति नन्दति नन्दत्येव॥१९॥

कोई योग में लगा हो या भोग में, संग में आसक्त हो या निसंग हो, पर जिसका मन ब्रह्म में लगा है वो ही आनंद करता है, आनंद ही करता है॥१९॥

भगवद् गीता किञ्चिदधीता,
गङ्गा जललव कणिकापीता।
सकृदपि येन मुरारि समर्चा,
क्रियते तस्य यमेन न चर्चा॥२०॥

जिन्होंने भगवदगीता का थोडा सा भी अध्ययन किया है, भक्ति रूपी गंगा जल का कण भर भी पिया है, भगवान कृष्ण की एक बार भी समुचित प्रकार से पूजा की है, यम के द्वारा उनकी चर्चा नहीं की जाती है॥२०॥

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,
पुनरपि जननी जठरे शयनम्।
इह संसारे बहुदुस्तारे,
कृपयाऽपारे पाहि मुरारे॥२१॥

बार-बार जन्म, बार-बार मृत्यु, बार-बार माँ के गर्भ में शयन, इस संसार से पार जा पाना बहुत कठिन है, हे कृष्ण कृपा करके मेरी इससे रक्षा करें॥२१॥

रथ्या चर्पट विरचित कन्थः,
पुण्यापुण्य विवर्जित पन्थः।
योगी योगनियोजित चित्तो,
रमते बालोन्मत्तवदेव॥२२॥

रथ के नीचे आने से फटे हुए कपडे पहनने वाले, पुण्य और पाप से रहित पथ पर चलने वाले, योग में अपने चित्त को लगाने वाले योगी, बालक के समान आनंद में रहते हैं॥२२॥

कस्त्वं कोऽहं कुत आयातः,
का मे जननी को मे तातः।
इति परिभावय सर्वमसारम्,
विश्वं त्यक्त्वा स्वप्न विचारम्॥२३॥

तुम कौन हो, मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, मेरी माँ कौन है, मेरा पिता कौन है? सब प्रकार से इस विश्व को असार समझ कर इसको एक स्वप्न के समान त्याग दो॥२३॥

त्वयि मयि चान्यत्रैको विष्णुः,
व्यर्थं कुप्यसि मय्यसहिष्णुः।
भव समचित्तः सर्वत्र त्वं,
वाञ्छस्यचिराद्यदि विष्णुत्वम्॥२४॥

तुममें, मुझमें और अन्यत्र भी सर्वव्यापक विष्णु ही हैं, तुम व्यर्थ ही क्रोध करते हो, यदि तुम शाश्वत विष्णु पद को प्राप्त करना चाहते हो तो सर्वत्र समान चित्त वाले हो जाओ॥२४॥

शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ,
मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ।
सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं,
सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम्॥२५॥

शत्रु, मित्र, पुत्र, बन्धु-बांधवों से प्रेम और द्वेष मत करो, सबमें अपने आप को ही देखो, इस प्रकार सर्वत्र ही भेद रूपी अज्ञान को त्याग दो॥२५॥

कामं क्रोधं लोभं मोहं,
त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्।
आत्मज्ञान विहीना मूढाः,
ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः॥२६॥

काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ, जो आत्म- ज्ञान से रहित मोहित व्यक्ति हैं वो बार-बार छिपे हुए इस संसार रूपी नरक में पड़ते हैं॥२६॥

गेयं गीता नाम सहस्रं,
ध्येयं श्रीपति रूपमजस्रम्।
नेयं सज्जन सङ्गे चित्तं,
देयं दीनजनाय च वित्तम्॥२७॥

भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों को गाते हुए उनके सुन्दर रूप का अनवरत ध्यान करो, सज्जनों के संग में अपने मन को लगाओ और गरीबों की अपने धन से सेवा करो॥२७॥

सुखतः क्रियते रामाभोगः,
पश्चाद्धन्त शरीरे रोगः।
यद्यपि लोके मरणं शरणं,
तदपि न मुञ्चति पापाचरणम्॥२८॥

सुख के लिए लोग आनंद-भोग करते हैं जिसके बाद इस शरीर में रोग हो जाते हैं। यद्यपि इस पृथ्वी पर सबका मरण सुनिश्चित है फिर भी लोग पापमय आचरण को नहीं छोड़ते हैं॥२८॥

अर्थंमनर्थम् भावय नित्यं,
नास्ति ततः सुखलेशः सत्यम्।
पुत्रादपि धनभजाम् भीतिः,
सर्वत्रैषा विहिता रीतिः॥२९॥

धन अकल्याणकारी है और इससे जरा सा भी सुख नहीं मिल सकता है, ऐसा विचार प्रतिदिन करना चाहिए | धनवान व्यक्ति तो अपने पुत्रों से भी डरते हैं ऐसा सबको पता ही है॥२९॥

प्राणायामं प्रत्याहारं,
नित्यानित्य विवेकविचारम्।
जाप्यसमेत समाधिविधानं,
कुर्ववधानं महदवधानम्॥३०॥

प्राणायाम, उचित आहार, नित्य इस संसार की अनित्यता का विवेक पूर्वक विचार करो, प्रेम से प्रभु-नाम का जाप करते हुए समाधि में ध्यान दो, बहुत ध्यान दो॥३०॥

गुरुचरणाम्बुज निर्भर भक्तः, संसारादचिराद्भव मुक्तः।
सेन्द्रियमानस नियमादेवं,
द्रक्ष्यसि निज हृदयस्थं देवम्॥३१॥

गुरु के चरण कमलों का ही आश्रय मानने वाले भक्त बनकर सदैव के लिए इस संसार में आवागमन से मुक्त हो जाओ, इस प्रकार मन एवं इन्द्रियों का निग्रह कर अपने हृदय में विराजमान प्रभु के दर्शन करो॥३१॥

मूढः कश्चन वैयाकरणो,
डुकृञ्करणाध्ययन धुरिणः।
श्रीमच्छम्कर भगवच्छिष्यै,
बोधित आसिच्छोधितकरणः॥३२॥

इस प्रकार व्याकरण के नियमों को कंठस्थ करते हुए किसी मोहित वैयाकरण के माध्यम से बुद्धिमान श्री भगवान शंकर के शिष्य बोध प्राप्त करने के लिए प्रेरित किये गए॥३२॥

भजगोविन्दं भजगोविन्दं,
गोविन्दं भजमूढमते।
नामस्मरणादन्यमुपायं,
नहि पश्यामो भवतरणे॥३३॥

गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि भगवान के नाम जप के अतिरिक्त इस भव-सागर से पार जाने का अन्य कोई मार्ग नहीं है॥३३॥

Bhaj Govindam Lyrics

Bhaj Govindam Lyrics In English

Bhaj Govindam

Aadi Shankaraachaary

Bhaj Govindan Bhaj Govindan,
Govindan Bhaj Moodha Mate.
Sanpraapte Sannihite Kaale,
N Hi N Hi Rakshati Dukrin Karane..1..

He Moh Se Grasit Buddhi Vaale Mitr, Govind Ko Bhajo, Govind Ka Naam Lo, Govind Se Prem Karo Kyonki Mrityu Ke Samay Vyaakaran Ke Niyam Yaad Rakhane Se Aapakee Raksha Naheen Ho Sakatee Hai..1..

Moodha़ Jaheehi Dhanaagamatrishnaam,
Kuru Sadbuddhiman Manasi Vitrishnaam.
Yallabhase Nijakarmopaattam,
Vittan Ten Vinoday Chittan..2..

He Mohit Buddhi! Dhan Ekatr Karane Ke Lobh Ko Tyaago. Apane Man Se In Samast Kaamanaaon Ka Tyaag Karo. Satyata Ke Path Ka Anusaran Karo, Apane Parishram Se Jo Dhan Praapt Ho Usase Hee Apane Man Ko Prasann Rakho..2..

Naareestanabharanaabheedesham,
Drishtva Maaga Mohaavesham.
Etanmaansavasaadivikaaram,
Manasi Vichintay Vaaran Vaaram..3..

Stree Shareer Par Mohit Hokar Aasakt Mat Ho. Apane Man Men Nirantar Smaran Karo Ki Ye Maansa-vasa Aadi Ke Vikaar Ke Atirikt Kuchh Aur Naheen Hain..3..

Nalineedalagatajalamatitaralam, Tadvajjeevitamatishayachapalam.
Viddhi Vyaadhyabhimaanagrastan,
Lok Shokahatan Ch Samastam..4..

Jeevan Kamala-patr Par Pada Ee Huee Paanee Kee Boondon Ke Samaan Anishchit Evan Alp (Kshanabhangur Hai. Yah Samajh Lo Ki Samast Vishv Rog, Ahankaar Aur Du:Kh Men Dooba Hua Hai..4..

Yaavadvittopaarjanasakta:,
Taavannijaparivaaro Raktah.
Pashchaajjeevati Jarjaradehe,
Vaartaan Ko’pi N Prichchhati Gehe..5..

Jab Tak Vyakti Dhanopaarjan Men Samarth Hai, Tab Tak Parivaar Men Sabhee Usake Prati Sneh Pradarshit Karate Hain Parantu Ashakt Ho Jaane Par Use Saamaany Baatacheet Men Bhee Naheen Poochha Jaata Hai..5..

Yaavatpavano Nivasati Dehe,
Taavat Prichchhati Kushalan Gehe.
Gatavati Vaayau Dehaapaaye,
Bhaarya Bibhyati Tasminkaaye..6..

Jab Tak Shareer Men Praan Rahate Hain Tab Tak Hee Log Kushal Poochhate Hain. Shareer Se Praan Vaayu Ke Nikalate Hee Patnee Bhee Us Shareer Se Daratee Hai..6..

Baalastaavat Kreedaasaktah,
Tarunastaavat Taruneesaktah.
Vriddhastaavachchintaasaktah,
Pare Brahmani Ko’pi N Saktah..7..

Bachapan Men Khel Men Roochi Hotee Hai , Yuvaavastha Men Yuva Stree Ke Prati Aakarshan Hota Hai, Vriddhaavastha Men Chintaaon Se Ghire Rahate Hain Par Prabhu Se Koee Prem Naheen Karata Hai..7..

Ka Te Kaanta Kaste Putrah,
Sansaaro’yamateev Vichitrah.
Kasy Tvan Va Kut Ayaatah,
Tattvan Chintay Tadih Bhraatah..8..

Kaun Tumhaaree Patnee Hai, Kaun Tumhaara Putr Hai, Ye Sansaar Atyant Vichitr Hai, Tum Kaun Ho, Kahaan Se Aaye Ho, Bandhu ! Is Baat Par To Pahale Vichaar Kar Lo..8..

Satsangatve Nissangatvan,
Nissangatve Nirmohatvan.
Nirmohatve Nishchalatattvan
Nishchalatattve Jeevanmuktih..9..

Satsang Se Vairaagy, Vairaagy Se Vivek, Vivek Se Sthir Tattvajnaan Aur Tattvajnaan Se Moksh Kee Praapti Hotee Hai..9..

Vayasi Gate Kah Kaamavikaarah,
Shushke Neere Kah Kaasaarah.
Ksheene Vitte Kah Parivaarah,
Jnaate Tattve Kah Sansaarah..10..

Aayu Beet Jaane Ke Baad Kaam Bhaav Naheen Rahata, Paanee Sookh Jaane Par Taalaab Naheen Rahata, Dhan Chale Jaane Par Parivaar Naheen Rahata Aur Tattv Jnaan Hone Ke Baad Sansaar Naheen Rahataa..10..

Ma Kuru Dhanajanayauvanagarvan,
Harati Nimeshaatkaalah Sarvan.
Maayaamayamidamakhilam Hitva,
Brahmapadam Tvan Pravish Viditvaa..11..

Dhan, Shakti Aur Yauvan Par Garv Mat Karo, Samay Kshan Bhar Men Inako Nasht Kar Deta Hai Is Vishv Ko Maaya Se Ghira Hua Jaan Kar Tum Brahm Pad Men Pravesh Karo..11..

Dinayaaminyau Saayan Praatah,
Shishiravasantau Punaraayaatah.
Kaalah Kreedati Gachchhatyaayustadapi
N Munchtyaashaavaayuh..12..

Din Aur Raat, Shaam Aur Subah, Sardee Aur Basant Baara-baar Aate-jaate Rahate Hai Kaal Kee Is Kreeda Ke Saath Jeevan Nasht Hota Rahata Hai Par Ichchhaao Ka Ant Kabhee Naheenhota Hai..12..

Dvaadashamanjarikaabhirasheshah
Kathito Vaiyaakaranasyaishah.
Upadesho’bhoodvidyaanipunaih, Shreemachchhankarabhagavachcharanaih..12A..

Baarah Geeton Ka Ye Pushpahaar, Sarvajn Prabhupaad Shree Shankaraachaary Dvaara Ek Vaiyaakaran Ko Pradaan Kiya Gayaa..12A..

Kaate Kaanta Dhan Gatachinta,
Vaatul Kin Tav Naasti Niyantaa.
Trijagati Sajjanasan Gatiraika,
Bhavati Bhavaarnavatarane Naukaa..13..

Tumhen Patnee Aur Dhan Kee Itanee Chinta Kyon Hai, Kya Unaka Koee Niyantrak Naheen Hai Teenon Lokon Men Keval Sajjanon Ka Saath Hee Is Bhavasaagar Se Paar Jaane Kee Nauka Hai..13..

Jatilo Mundee Lunchhitakeshah, Kaashaayaambarabahukritaveshah.
Pashyannapi Ch N Pashyati Moodhah,
Udaranimittan Bahukritaveshah..14..

Bada़Ee Jataaen, Kesh Rahit Sir, Bikhare Baal , Kaashaay (Bhagava Vastr Aur Bhaanti Bhaanti Ke Vesh Ye Sab Apana Pet Bharane Ke Lie Hee Dhaaran Kiye Jaate Hain, Are Mohit Manushy Tum Isako Dekh Kar Bhee Kyon Naheen Dekh Paate Ho..14..

Angan Galitan Palitan Mundan,
Dashanaviheenan Jatan Tundam.
Vriddho Yaati Griheetva Dandan,
Tadapi N Munchatyaashaapindam..15..

Ksheen Angon, Pake Hue Baalon, Daanton Se Rahit Mukh Aur Haath Men Dand Lekar Chalane Vaala Vriddh Bhee Aashaa-paash Se Bandha Rahata Hai..15..

Agre Vahnih Prishthebhaanuh,
Raatrau Chubukasamarpitajaanuh.
Karatalabhikshastarutalavaasah,
Tadapi N Munchatyaashaapaashah..16..

Sooryaast Ke Baad, Raatri Men Aag Jala Kar Aur Ghutanon Men Sar Chhipaakar Sardee Bachaane Vaala, Haath Men Bhiksha Ka Ann Khaane Vaala, Peda़ Ke Neeche Rahane Vaala Bhee Apanee Ichchhaaon Ke Bandhan Ko Chhoda़ Naheen Paata Hai..16..

Kurute Gangaasaagaragamanan,
Vrataparipaalanamathava Daanam.
Jnaanavihinah Sarvamaten,
Muktin N Bhajati Janmashatena..17..

Kisee Bhee Dharm Ke Anusaar Jnaan Rahit Rah Kar Gangaasaagar Jaane Se, Vrat Rakhane Se Aur Daan Dene Se Sau Janmon Men Bhee Mukti Naheen Praapt Ho Sakatee Hai..17..

Sur Mandir Taru Mool Nivaasah,
Shayya Bhootal Majinan Vaasah.
Sarv Parigrah Bhog Tyaagah,
Kasy Sukhan N Karoti Viraagah..18..

Dev Mandir Ya Peda़ Ke Neeche Nivaas, Prithvee Jaisee Shayya, Akele Hee Rahane Vaale, Sabhee Sangrahon Aur Sukhon Ka Tyaag Karane Vaale Vairaagy Se Kisako Aanand Kee Praapti Naheen Hogee..18..

Yogarato Vaabhogaratova,
Sangarato Va Sangaveehinah.
Yasy Brahmani Ramate Chittan,
Nandati Nandati Nandatyeva..19..

Koee Yog Men Laga Ho Ya Bhog Men, Sang Men Aasakt Ho Ya Nisang Ho, Par Jisaka Man Brahm Men Laga Hai Vo Hee Aanand Karata Hai, Aanand Hee Karata Hai..19..

Bhagavad Geeta Kinchidadheeta,
Ganga Jalalav Kanikaapeetaa.
Sakridapi Yen Muraari Samarcha,
Kriyate Tasy Yamen N Charchaa..20..

Jinhonne Bhagavadageeta Ka Thoda Sa Bhee Adhyayan Kiya Hai, Bhakti Roopee Ganga Jal Ka Kan Bhar Bhee Piya Hai, Bhagavaan Krishn Kee Ek Baar Bhee Samuchit Prakaar Se Pooja Kee Hai, Yam Ke Dvaara Unakee Charcha Naheen Kee Jaatee Hai..20..

Punarapi Jananan Punarapi Maranan,
Punarapi Jananee Jathare Shayanam.
Ih Sansaare Bahudustaare,
Kripayaa’paare Paahi Muraare..21..

Baara-baar Janm, Baara-baar Mrityu, Baara-baar Maan Ke Garbh Men Shayan, Is Sansaar Se Paar Ja Paana Bahut Kathin Hai, He Krishn Kripa Karake Meree Isase Raksha Karen..21..

Rathya Charpat Virachit Kanthah,
Punyaapuny Vivarjit Panthah.
Yogee Yoganiyojit Chitto,
Ramate Baalonmattavadeva..22..

Rath Ke Neeche Aane Se Phate Hue Kapade Pahanane Vaale, Puny Aur Paap Se Rahit Path Par Chalane Vaale, Yog Men Apane Chitt Ko Lagaane Vaale Yogee, Baalak Ke Samaan Aanand Men Rahate Hain..22..

Kastvan Ko’han Kut Aayaatah,
Ka Me Jananee Ko Me Taatah.
Iti Paribhaavay Sarvamasaaram,
Vishvan Tyaktva Svapn Vichaaram..23..

Tum Kaun Ho, Main Kaun Hoon, Kahaan Se Aaya Hoon, Meree Maan Kaun Hai, Mera Pita Kaun Hai? Sab Prakaar Se Is Vishv Ko Asaar Samajh Kar Isako Ek Svapn Ke Samaan Tyaag Do..23..

Tvayi Mayi Chaanyatraiko Vishnuh,
Vyarthan Kupyasi Mayyasahishnuh.
Bhav Samachittah Sarvatr Tvan,
Vaanchhasyachiraadyadi Vishnutvam..24..

Tumamen, Mujhamen Aur Anyatr Bhee Sarvavyaapak Vishnu Hee Hain, Tum Vyarth Hee Krodh Karate Ho, Yadi Tum Shaashvat Vishnu Pad Ko Praapt Karana Chaahate Ho To Sarvatr Samaan Chitt Vaale Ho Jaao..24….

Shatrau Mitre Putre Bandhau,
Ma Kuru Yatnan Vigrahasandhau.
Sarvasminnapi Pashyaatmaanan,
Sarvatrotsrij Bhedaajnaanam..25….

Shatru, Mitr, Putr, Bandhu-baandhavon Se Prem Aur Dvesh Mat Karo, Sabamen Apane Aap Ko Hee Dekho, Is Prakaar Sarvatr Hee Bhed Roopee Ajnaan Ko Tyaag Do..25..

Kaaman Krodhan Lobhan Mohan,
Tyaktvaa’tmaanan Bhaavay Ko’ham.
Aatmajnaan Viheena Moodhaah,
Te Pachyante Narakanigoodhaah..26…

Kaam, Krodh, Lobh, Moh Ko Chhoda़ Kar, Svayan Men Sthit Hokar Vichaar Karo Ki Main Kaun Hoon, Jo Aatma- Jnaan Se Rahit Mohit Vyakti Hain Vo Baara-baar Chhipe Hue Is Sansaar Roopee Narak Men Pada़Te Hain..26..

Geyan Geeta Naam Sahasran,
Dhyeyan Shreepati Roopamajasram.
Neyan Sajjan Sange Chittan,
Deyan Deenajanaay Ch Vittam..27….

Bhagavaan Vishnu Ke Sahastr Naamon Ko Gaate Hue Unake Sundar Roop Ka Anavarat Dhyaan Karo, Sajjanon Ke Sang Men Apane Man Ko Lagaao Aur Gareebon Kee Apane Dhan Se Seva Karo..27….

Sukhatah Kriyate Raamaabhogah,
Pashchaaddhant Shareere Rogah.
Yadyapi Loke Maranan Sharanan,
Tadapi N Munchati Paapaacharanam..28….

Sukh Ke Lie Log Aananda-bhog Karate Hain Jisake Baad Is Shareer Men Rog Ho Jaate Hain. Yadyapi Is Prithvee Par Sabaka Maran Sunishchit Hai Phir Bhee Log Paapamay Aacharan Ko Naheen Chhoda़Te Hain…28…

Arthanmanartham Bhaavay Nityan,
Naasti Tatah Sukhaleshah Satyam.
Putraadapi Dhanabhajaam Bheetih,
Sarvatraisha Vihita Reetih..29…

Dhan Akalyaanakaaree Hai Aur Isase Jara Sa Bhee Sukh Naheen Mil Sakata Hai, Aisa Vichaar Pratidin Karana Chaahie Dhanavaan Vyakti To Apane Putron Se Bhee Darate Hain Aisa Sabako Pata Hee Hai..29…

Praanaayaaman Pratyaahaaran,
Nityaanity Vivekavichaaram.
Jaapyasamet Samaadhividhaanan,
Kurvavadhaanan Mahadavadhaanam…30…

Praanaayaam, Uchit Aahaar, Nity Is Sansaar Kee Anityata Ka Vivek Poorvak Vichaar Karo, Prem Se Prabhu-naam Ka Jaap Karate Hue Samaadhi Men Dhyaan Do, Bahut Dhyaan Do..30..

Gurucharanaambuj Nirbhar Bhaktah, Sansaaraadachiraadbhav Muktah.
Sendriyamaanas Niyamaadevan,
Drakshyasi Nij Hridayasthan Devam..31..

Guru Ke Charan Kamalon Ka Hee Aashray Maanane Vaale Bhakt Banakar Sadaiv Ke Lie Is Sansaar Men Aavaagaman Se Mukt Ho Jaao, Is Prakaar Man Evan Indriyon Ka Nigrah Kar Apane Hriday Men Viraajamaan Prabhu Ke Darshan Karo..31..

Moodhah Kashchan Vaiyaakarano,
Dukrinkaranaadhyayan Dhurinah.
Shreemachchhamkar Bhagavachchhishyai,
Bodhit Aasichchhodhitakaranah..32..

Is Prakaar Vyaakaran Ke Niyamon Ko Kanthasth Karate Hue Kisee Mohit Vaiyaakaran Ke Maadhyam Se Buddhimaan Shree Bhagavaan Shankar Ke Shishy Bodh Praapt Karane Ke Lie Prerit Kiye Gae..32..

Bhajagovindan Bhajagovindan,
Govindan Bhajamoodhamate.
Naamasmaranaadanyamupaayan,
Nahi Pashyaamo Bhavatarane..33..

Govind Ko Bhajo, Govind Ka Naam Lo, Govind Se Prem Karo Kyonki Bhagavaan Ke Naam Jap Ke Atirikt Is Bhava-saagar Se Paar Jaane Ka Any Koee Maarg Naheen Hai..33.


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